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वाघबारस परम्परा

Credits : Sthalantar Research Foundation

आदिवासी भारत का ही मूलनिवासी है, भारत में आदिवासियों की अलग-अलग जातियां, जनजातियां हैं; तथा आदिवासी को प्रकृति पूजक भी कहा गया हैI वह सदियों से जल, जंगल, जमीन की पूजा करते आए हैं। उनकी कई सारी प्रथाएं, रीति रिवाज़, परपंरा इसकी परिचायक हैं।

मै आज ऎसी ही एक प्रथा,पूजा परंपरा के बारे में आप को बताने वाला हूं। उस जनजाति का नाम है कोली महादेव अथवा महादेव कोली। यह जनजाति सहयाद्रि की घाटी में एक दूरदराज के इलाके में रहने वाली एक आदिवासी जनजाति है। मुख्यतः यह जनजाति भारत के महाराष्ट्र राज्य में रहने वाली जनजाति हैI इनकी जनसंख्या सन 1961 की जनगणना में 2,74,244 थी; लेकीन उसके बाद उनकी अलग से जनगणना नहीं हुईl यह जनजाति महाराष्ट्र के पश्चिम क्षेत्र के तीन जिलों में पाई जाती है: पुणे, अहमदनगर और नासिक। इस जनजाति ने अपनी संस्कृति परंपरा अभी तक बचा रखी हुई है । कोली महदेव जनजाति के लोग अपने आस पास के जंगल के पेड़ों की पूजा करते हैं और उन्हीं को ही अपने देवी देवता मानते हैं जिनको यह लोग कलमजामाता, वरसुआई, घोरापडा देवी, कळसुआई के नाम से बुलाते है । कोली जनजाति के लोग जंगली प्राणी पशु पक्षियों की पूजा करते है तथा अपने घर के गाय, बैल की पूजा एक विशेष त्यौहार पर करते हैं। बैल की पूजा बैल पोला (पोळा) त्योहार पर की जाती यह त्यौहार महाराष्ट्र में यही आदिम जनजाति में मनाया जाता है।

मैं आज आप लोगों को एक ऐसे ही पूजा, परंपरा जो महादेव कोली जनजाति में कई सालों से की जाती है उसी के बारे में आज बताने वाला हूं। उसका नाम है वाघबारस; यह पूजा हर साल की जाती परंपरागत पूजा है जो कि सालों से चली आ रही है यह परंपरा इसी महादेव कोली जनजाति में चली आ रही है इसमें शेर की पूजा की जाती है इस पूजा के दिन चावल की खीर बनाकर उसका नैवेद्य शेर को दिखाया जाता हैI इस पूजा मे मुख्यतः चावल, दूध, नारियल, हल्दी और कुमकुम, शेदुर, अगरबत्ती, तेल, और मिटटी का दिया (दीप) का इस्तेमाल किया जाता है।

Credits : Sthalantar Research Foundation

कोली महादेव जनजाति को लोग एक निश्चित स्थान पर जहाँ प्रतिवर्ष पूजा की जाती है एक बड़े पत्थर को साफ पानी से धो कर तैयार करते है और उस पर शेदुर (भगवा रंग) से शेर का चित्र बनाते है । पत्थर पर बने शेर के चित्र के सामने एक पेड़ की पाँच पत्तियां रखी जाती है और उन पत्तियों में नये चावल की बनी हुई खीर को थोड़ा थोड़ा रखा जाता है और उसके साथ मिट्‍टी का दिया जला कर कुछ अगरबत्तियां जलाई जाती है ।

कोली जनजाति के लोगो की यह धारणा है कि शेर जंगल का राजा होता है और गाँव के सभी लोग अपने मवेशिओ (गाय, भैंस, बकरी आदि को जिनको चराने वह जंगल मे ले जाया करते है ) को शेर से बचाने के लिये उसकी पूजा करते है । प्रत्येक साल में कार्तिकी एकाद्शी के दूसरे दिन को यह पूजा की जाती है। इसको करने का तरीका हर जगह थोडा थोडा अलग भी होता है लेकिन मुख्य तरीका पत्थर पर शेर क चित्र बना कर उसको भोजन देना है I इस परंपरा में शेर को एक देवता के रूप में देखा जाता है जिसके कारण शेरों का भी संरक्षण इस परंपरा के साथ होता है। लेकिन लोग इसके पीछे की जो मूल धारणा है उसको समझ नहीं पाते जिसके कारण लोगों को लगता हैं; की आदिवासी मूर्ति पूजा भी करते हैं लेकिन यह गलत मान्यता है । आदिम जनजाति आदि काल से ही प्रकृति की पूजा करते आ रहे हैं और आगे भी प्रकृति की पूजा करते रहेंगे हैं जिसका उद्देश्य प्रकृति का आशीर्वाद लेना है ताकि लोगो के मवेशी और फसल समृद्धि हो और फलते फूलते रहें ।

अंत में सभी को यही संदेश देना चाहता हूं कि आदिम जनजाति की परंपरा, प्रथाए, रीति-रिवाज को समझें, उनका सम्मान करें और उनको बचाए रखें।

धन्यवाद!
जय भारत, जय आदिम, जय आदिवासी, जय राघोजी, जय बिरसा !!!

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Jalindhar Maruti Ghane
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Jalindhar Maruti Ghane has completed his MBA-Rural Management from IIHMR University, Jaipur. Prior to his MBA Jalindhar has completed the Certificate Programme in Rural Livelihood of Bharat Rural Livelihood Foundation. He has vast knowledge of tribal culture, beliefs and livelihood. Jalindar is working as Young Professional in Rajasthan Grameen Ajeevika Parishad (RGAVP) in Dungarpur district of Rajasthan.

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